शांति पाठ-- यह पूर्ण है, वह पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण बनता है l पूर्ण में से पूर्ण ले लेने पर पूर्ण ही शेष रहता है l; ॐ शांति, शांति, शांति, l
मोक्ष के अभिलाषी भिक्षुक चार श्रेणियों के होते हैं-- कुटीक, बहूदक, हंस, परमहंस ll1ll कुटीचक सन्यासी गौतम, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, वशिष्ठ आदि की तरह आठ ग्रास का भोजन करके योगमार्ग द्वारा मोक्ष की खोज करते हैं ll2ll बहूदक त्रिदण्ड, कमण्डल, शिखा-सुत्र, काषाय वस्त्र धारण करके मधुमांस का त्याग करते हुए ब्रहार्षि के घर से आठ ग्रास भोजन करते हैं और योगमार्ग द्वारा मोक्ष की खोज करते हैं ll3ll हंस नामधारी सन्यासी ग्राम में एक रात्रि, नगर में पाँच रात्रि, क्षेत्र में सात रात्रि से अधिक निवास नहीं करते l ये गोमूत्र और गोबर का आहार करने वाले, सदैव चान्द्रायण व्रत करने वाले योगमार्ग से मोक्ष की खोज करते हैं ll4ll परमहंस नाम के सन्यासी संवर्तक, अरूणि, श्वेतकेतु, जड़भरत, दत्तात्रेय, शुकदेव, वामदेव, हारीतक प्रभृति की भाँति आठ ग्रास भोजन करके योगमार्ग से मोक्ष की खोज करते हैं l ये परमहंस वृक्षमूल, शून्यगृह, श्मशान आदि में सवस्त्र अथवा दिगम्बर वेष में रहते हैं l उनको धर्म-अधर्म, लाभ-हानि, शुद्ध-अशुद्ध से कोई मतलब नहीं रहता, द्वैतभाव नहीं रखते, मिट्टी और सोने को एक समान समझते हैं, सब वर्णो के यहाँ भिक्षा करते हैं और सबको आत्मवत् देखते हैं l वे नंगे, निर्द्वन्द्, परिग्रह रहित, शुक्ल ध्यान परायण, आत्मनिष्ठ, प्राण धारण करने के निमित्त नियत समय पर भिक्षा करने वाले, सुनसान स्थान, मन्दिर, घर, झोंपड़ी, बाँवी, वृक्षमूल, कुलालशाला, यज्ञशाला, नदी का किनारा, पहाड़ की गुफा, टीला, गड्ढा, झरना आदि किसी भी स्थान में रहकर, ब्रहामार्ग में सम्यक् प्रकार से सम्पन्न होकर शुद्ध मन से परमहंस के आचारों का पालन करते हुए सन्यास द्वारा देहत्याग करते हैं, वे ही परमहंस है l यह उपनिषद् है ll5ll
ll भिक्षकोपनिषद् समाप्त ll
मोक्ष के अभिलाषी भिक्षुक चार श्रेणियों के होते हैं-- कुटीक, बहूदक, हंस, परमहंस ll1ll कुटीचक सन्यासी गौतम, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, वशिष्ठ आदि की तरह आठ ग्रास का भोजन करके योगमार्ग द्वारा मोक्ष की खोज करते हैं ll2ll बहूदक त्रिदण्ड, कमण्डल, शिखा-सुत्र, काषाय वस्त्र धारण करके मधुमांस का त्याग करते हुए ब्रहार्षि के घर से आठ ग्रास भोजन करते हैं और योगमार्ग द्वारा मोक्ष की खोज करते हैं ll3ll हंस नामधारी सन्यासी ग्राम में एक रात्रि, नगर में पाँच रात्रि, क्षेत्र में सात रात्रि से अधिक निवास नहीं करते l ये गोमूत्र और गोबर का आहार करने वाले, सदैव चान्द्रायण व्रत करने वाले योगमार्ग से मोक्ष की खोज करते हैं ll4ll परमहंस नाम के सन्यासी संवर्तक, अरूणि, श्वेतकेतु, जड़भरत, दत्तात्रेय, शुकदेव, वामदेव, हारीतक प्रभृति की भाँति आठ ग्रास भोजन करके योगमार्ग से मोक्ष की खोज करते हैं l ये परमहंस वृक्षमूल, शून्यगृह, श्मशान आदि में सवस्त्र अथवा दिगम्बर वेष में रहते हैं l उनको धर्म-अधर्म, लाभ-हानि, शुद्ध-अशुद्ध से कोई मतलब नहीं रहता, द्वैतभाव नहीं रखते, मिट्टी और सोने को एक समान समझते हैं, सब वर्णो के यहाँ भिक्षा करते हैं और सबको आत्मवत् देखते हैं l वे नंगे, निर्द्वन्द्, परिग्रह रहित, शुक्ल ध्यान परायण, आत्मनिष्ठ, प्राण धारण करने के निमित्त नियत समय पर भिक्षा करने वाले, सुनसान स्थान, मन्दिर, घर, झोंपड़ी, बाँवी, वृक्षमूल, कुलालशाला, यज्ञशाला, नदी का किनारा, पहाड़ की गुफा, टीला, गड्ढा, झरना आदि किसी भी स्थान में रहकर, ब्रहामार्ग में सम्यक् प्रकार से सम्पन्न होकर शुद्ध मन से परमहंस के आचारों का पालन करते हुए सन्यास द्वारा देहत्याग करते हैं, वे ही परमहंस है l यह उपनिषद् है ll5ll
ll भिक्षकोपनिषद् समाप्त ll
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